दरकते हुए रिश्तों....

दरकते हुए रिश्तों ।
की तुरपाई करना ।।
भूल कर गिले-शिकवे ।
नये सिरे से भरपाई करना ।।
मुक्त ह्रदय से एक-दूसरे को ।
संवाद सेआदान-प्रदान करना ।।
सच हैं यह की बढ़ते जीवन के ।
जदोजहद सुलझाने में ।।
कई तो भावनाओं को जताने में ।
कुछ तो गुजरे हुए वक्त के साथ अफसाने जताने में ।।
खुद से करना होगा वादा ।
किसी को ठेस न पहुंचायेंगे ।।
दरक गए रिश्ते तो ।
रफू करते जायेंगे ।।
कई साल गुजर जायेंगे ।
क्या रिश्ते के मायने समझ पायेंगे ?
हमारी गलतियों की वजह से ।
कई अहम चेहरे धूमिल पड़ गए ।।
खैर कोई बात नहीं ।
हम भी तो इंसान है ।।
गलतियाँ भी हम से ही होती है ।
स्वीकार करने में क्या हर्ज है ?
उलझनों,गलतफहमियों से ।
गर मुक्त हो जाते ।।
तभी हम रिश्तों के ।
मर्म को समझ पाते ।।
चेहरों पर बनावटी मुस्कान ।
चिपकायें हम रहते हैं ।।
हकीकत छुपा कर ।
नजरे चुराये रहते हैं ।।
हाथों में होती है ।
रिश्तों की डोर ।।
मुखौटे सभी हटायेंगे ।
निश्छल हँसी तभी हँस पायेंगे ।।
दूर कर सारी शिकवे ।
दिल का हाल न छुपायेंगे ।।

                            अभय सिंह

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