हमारा आर्यावर्त... क्यों जा रहा है गर्त?

हमार आर्यावर्त।
क्यों जा रहा है गर्त?
पूछ रही है नारी।
कब तक बर्बरता जारी?
जीना यहां मुस्किल है।
दानवों से सहम जाता दिल।।
शासक बने लाचार एवं मूकदर्शक।
कोशिश भी नहीं करता उचित भरसक।।
पीर अत्यंत दु:खदाई है।
इंसानियत की भेष में।।
ना जाने किस मोड़ पर।
घात लगाकर बैठा वो कसाई है।।
इंसानियत दम तोड़ रही है।
अपनों से इस कदर मुंह मोड़ रही है।।
मौन हो कर देख रहे हैं।
चीर खींच रहा दुशासन।।
आंसू भी सूख गए हैं।
उम्मीद भी टूट गई है।।
वक्त नहीं है अब इन।
नयनों से नीर बनाने का।।
गया वो समय अपनी।
पीर दुनिया को बतलाने का।।
उठो ,जागो लो काली रूपी अवतार।
क्षण में  दानवों का कर दो तुम संहार।।




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